Wednesday 23 November 2011

तंत्र में भी आराध्य हैं गणेश

                                          

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  भगवान गणेश की तस्वीर को देखें तो उसमें एक हाथी और मनुष्य का सम्मिश्रण दिखता है, जिसमें उनके नीचे एक चूहा है। यह तस्वीर तीन विश्वों को निरूपित करती है, एक तो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल या सूर्य, चंद्र और अग्नि। इस प्रतीकात्मकता को जीवों और स्तनधारियों के समूह से लिया गया है। मानवता इसमें बड़े और छोटे विश्वों के बीच कहीं है। इसी वजह से गणेश को तीन गुणों से संपन्न कहा गया है।

गणेश का विघ्नों से संबंध उनकी हाथी के रूप में बलशाली होने से बनता है। बुद्धि मनुष्य की तरह तेज और क्षुद्र जगहों तक पहुंच पाने की शक्ति बताता है उनका वाहन चूहा। आमतौर पर गणेश चार भुजाओं वाले बनाए जाते हैं जो चार दिशाओं या चार तत्वों से संबंधित हैं। गणेश का मतलब है गणों के अधीश्वर। तांत्रिक प्रतीकों में यह विशेषण काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

तांत्रिक पद्धतियों में गणेश को कुंडलिनी के मूलाधार चक्र का स्वामी माना गया है। मूलाधार चक्र को पृथ्वी तत्व का निरूपक कहा जाता है जिसे पीतवर्ण के वर्गाकार और लं बीजमंत्र से समझा जाता है। इस वर्गाकार के चारों ओर चार पत्ते हैं। इसके अंदर बीजमंत्र से नीचे शिवलिंग का वास होता है। हर बीजमंत्र का एक वाहन होता है और लं का वाहन है हाथी। इसलिए तांत्रिक विचारधारा में गणेश के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाता है।

गणपति यंत्र

भगवान बीजमंत्रों से मनाए जाते हैं। कुंडलिनी को जगाने के लिए इन्हीं बीजमंत्रों का प्रयोग किया जाता है। भगवान गणेश के यंत्र को महागणपति यंत्र कहा गया है। गणेश को कई रूपों में देखा जाता है- हेरम्ब, हरिद्रा और उच्छिष्ट गणपति। शरदतिलक नाम के एक तंत्र ग्रंथ में महागणपति की उपासना के बारे में कहा गया है कि उन्हें (गणेश को) पूजने के लिए साधक को उनका यह रूप ध्यान में लाना चाहिए- अक्षरों से बने कमल के पत्ते पर गणेश विराजमान हैं। साधक को नौरत्नों वाले द्वीप को ध्यान में रखना चाहिए जो गन्ने के रस के सागर में विद्यमान है। एक मद्धम शीतल हवा वहां से बह रही है, जो इस द्वीप के तटों से आकर टकराती है। यह स्थान मंदार, पारिजात और अन्य कल्पवृक्षों का वन है। इन नौ रत्नों की आभा से द्वीप की भूमि जगमगा रही है। छहों ऋतुएं वहां होती हैं। सूर्य और चंद्र इस स्थान को प्रकाशित करते हैं। द्वीप के मध्य में एक पारिजात वृक्ष है जिस पर नौ रत्न लगे हैं और उसके नीचे एक पीठ पर महागणपति विद्यमान हैं। हाथी मुख पर उनके एक चंद्र विराजमान है। वह लाल रंग के हैं और उनके तीन नेत्र हैं। उनकी गोद में उनकी प्रिया बैठी हैं जिनके हाथ में एक कमल है। गणेश के दस हाथों में दस विभिन्न वस्तुएं हैं। उनके कान हिलाते ही उनके आसपास मंडरा रही मक्खियां दूर हो जाती हैं, जो उनके शरीर से नि:सृत पदार्थ से आकर्षित होकर पहुंच रही हैं। गणपति अपनी सूंढ़ में पकड़े गए जार से एक-एक कर रत्नों को इधर-उधर फैला रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर रत्नजटित मुकुट पहन रखा है।

गणपति की पूजा के लिए बीज मंत्र है गं। पूजा से पूर्व साधक या साधिका को इसे अपने शरीर पर धारण करना चाहिए और धीमे स्वरों में बीजमंत्र का पाठ करना चाहिए। गणेश को स्वास्तिक निशान के साथ भी दिखाया जाता है, जो चार गं बीजों को साथ रखने से बनता है।

मध्यकाल से पहले लगता है कि गाणपत्य नाम का एक तांत्रिक संप्रदाय था, जो शक्ति की उपासना करता था। शिव की तरह ही गणेश पूजा भी लिंग से ही की जाती थी लेकिन वह लाल रंग का होता था।

हेरम्ब गणपति
इनका मंत्र है ओम गं नम:। वह हजारों सूर्यो के समान चमकदार हैं और एक शेर की सवारी करते हैं और विभिन्न रंगों के उनके पांच मुख हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं।
त्रैलोक्यमोहंकार गणेश
इसका मतलब है तीनों विश्वों में माया जाल रचने वाले। इसका यंत्र भी पिछले वाले की तरह ही है। हालांकि उसमें षटकोण के बीच कोई त्रिकोण नहीं है। इसकी जगह इसमें उनका मंत्र है - वक्रतुंडे क्लीं क्लीं क्लीं गं गणपते वरावरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा। इसका मतलब बताता है कि इसे खास किस्म के कर्मकांड में प्रयोग किया जाता है।
सिद्धिविनायक
इसका मंत्र है ओम नमो सिद्धिविनायक सर्वकार्यकत्रयी सर्वविघ्नप्रशामण्य सर्वराज्यवश्याकारण्य सर्वज्ञानसर्व स्त्रीपुरुषाकारषण्य। गणोश के इस रूप का प्रयोग खास सिद्धि हासिल करने के लिए और विघ्नों का नाश करने के लिए होता है।
शक्तिविनायक
इसका मंत्र है ओम ह्रीं ग्रीं ह्रीं। इस मंत्र के ऋषि हैं भार्गव। ग्रीं बीज है और ह्रीं शक्ति। इसमें शक्तिविनय का ध्यान किया जाता है। यंत्र षटकोणीय होता है जिसमें यह बीजमंत्र लिखा जाता है।
लक्ष्मीविनायक
इसमें षटकोणीय यंत्र का प्रयोग होता है लेकिन मंत्र केंद्र में होता है- ओम श्रीं गं सौम्याय गणपत्ये वारवरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा।
हरिद्रा गणेश
हरिद्रा रूप के लिए मंत्र है ओ हं गं ग्लां और इसका यंत्र लक्ष्मी विनायक जैसा ही होता है, जिसके मध्य में बीजमंत्र रखा जाता है। इस रूप में चार भुजाधारी गणेश पूरी तरह पीत वस्त्रों में दिखाए जाते हैं। एक हाथ उनकी सूंढ़ को छू रहा होता है।
उच्छिष्ट गणपति
इसे पूजा के बाद संपन्न किया जाता है। गणपति के इस रूप में 9 अक्षरों का एक मंत्र होता है, इसके बाद 12 अक्षरों का, फिर 19, 32 और 37 अक्षरों के मंत्र सम्मि

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